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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. ३ : सू. १३८-१४५ १३८. भन्ते! पारितापनिको क्रिया कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है? मण्डितपुत्र! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे-स्व-हस्त-पारितापनिकी और पर-हस्त-पारितापनिकी। १३९. प्राणातिपात-क्रिया कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है?
मण्डितपुत्र! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त हैं, जैसे-स्व-हस्त-प्राणातिपात-क्रिया और पर-हस्त-प्राणातिपात-क्रिया। क्रिया-वेदना-पद १४०. भंते! क्या पहले क्रिया और पीछे वेदना होती है? अथवा पहले वेदना और पीछे क्रिया होती है?
मण्डितपुत्र! पहले क्रिया और पीछे वेदना होती है। पहले वेदना और पीछे क्रिया नहीं होती। १४१. भन्ते! क्या श्रमण-निर्ग्रन्थों के क्रिया होती है?
हां, होती है। १४२. भन्ते! श्रमण-निर्ग्रन्थों के क्रिया कैसे होती है? मण्डितपुत्र! उसका प्रत्यय है-प्रमाद और उसका निमित्त है योग। इस प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के प्रमाद और योग-इन दो हेतुओं से क्रिया होती है। अन्तक्रिया-पद १४३. भन्ते! क्या जीव सदा प्रतिक्षण एजन, व्येजन, चलन, स्पन्दन, घट्टन, क्षोभ और उदीरणा को प्राप्त होता है तथा उस-उस भाव (परिणाम) में परिणत होता है? हां, मण्डितपुत्र! जीव सदा प्रतिक्षण एजन, व्येजन, चलन, स्पन्दन, घट्टन, क्षोभ और उदीरणा
को प्राप्त होता है तथा उस-उस भाव (परिणाम) में परिणत होता है। १४४. भन्ते! जब वह जीव सदा प्रतिक्षण एजन, व्येजन, चलन, स्पन्दन, घट्टन, क्षोभ और उदीरणा को प्राप्त होता है तथा उस-उस भाव (परिणाम) में परिणत होता है तब उस जीव के अन्तिम समय में अन्तक्रिया होती है? यह अर्थ संगत नहीं है। १४५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जब वह जीव सदा प्रतिक्षण एजन, व्येजन, चलन, स्पन्दन, घट्टन, क्षोभ और उदीरणा को प्राप्त होता है तथा उस-उस भाव (परिणाम) में परिणत होता है , तब उस जीव के अन्तिम समय में अन्तक्रिया नहीं होती? मण्डितपुत्र! जब वह जीव सदा प्रतिक्षण एजन, व्येजन, चलन, स्पन्दन, घट्टन, क्षोभ और उदीरणा को प्राप्त होता है तथा उस-उस भाव (परिणाम) में परिणत होता है तब वह जीव आरम्भ करता है, संरम्भ करता है और समारंभ करता है। वह आरम्भ में प्रवृत्त रहता है, संरम्भ में प्रवृत रहता है और समारम्भ में प्रवृत्त रहता है। वह आरम्भ करता हुआ, संरम्भ करता हुआ और समारम्भ करता हुआ आरम्भ में प्रवृत्त रहता हुआ, संरम्भ में प्रवृत रहता
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