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श. ३ : उ. २,३ : सू. १३१-१३७
भगवती सूत्र असुरकुमारों का ऊर्ध्वलोक में जाने का हेतु-पद १३१. भंते। असुरकुमार-देव ऊर्ध्व-लोक में यावत् सौधर्म-कल्प तक किस प्रत्यय से जाते हैं?
गौतम! तत्काल उपपन्न और जीवन के चरम भाग में अवस्थित देवों के यह इस प्रकार का आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक, अभिलाषात्मक, मनोगत संकल्प उत्पन्न होता है-अहो! हमने ऐसी दिव्य देवर्द्धि यावत् अभिसमन्वागत की है। हमने जैसी दिव्य देविड़ यावत् अभिसमन्वागत की है, वैसी ही दिव्य देवर्द्धि यावत् देवेन्द्र देवराज शक्र ने अभिसमन्वागत की है। जैसी दिव्य देविर्द्धि यावत् देवेन्द्र देवराज शक्र ने अभिसमन्वागत की है, हमने भी वैसी ही दिव्य देवर्द्धि यावत् अभिसमन्वागत की है; इसलिए हम देवेन्द्र देवराज शक्र के पास जाएं, वहां प्रकट होकर देवेन्द्र देवराज शक्र ने जो दिव्य देवर्द्धि यावत् अभिसमन्वागत की है, उसे देखें। हमने जो दिव्य देवर्द्धि यावत् अभिसमन्वागत की है उसे देवेन्द्र देवराज शक्र भी देखें। देवेन्द्र देवराज शक्र ने जो दिव्य देवर्द्धि यावत् अभिसमन्वागत की है, उसे हम जानें। हमने जो दिव्य देवर्द्धि यावत् अभिसमन्वागत की है, उसे देवेन्द्र देवराज शक्र भी जाने ।
इस प्रकार गौतम! असुरकुमार देव ऊर्ध्व-लोक में यावत् सौधर्म कल्प तक जाते हैं। १३२. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
तीसरा उद्देशक क्रिया-पद १३३. उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। भगवान् महावीर वहां पधारे।
परिषद् आई यावत् धर्म सुनकर वापिस चली गई। १३४. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर का अन्तेवासी शिष्य मण्डितपुत्र नामक अनगार भगवान् के पास आया। वह प्रकृति से भद्र था यावत् भगवान् की पर्युपासना करता हुआ इस प्रकार बोला-भंते! कितनी क्रियाएं प्रज्ञप्त हैं? मंडितपुत्र! पांच क्रियाएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे–कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी
और प्राणातिपात-क्रिया। १३५. भन्ते! कायिकी क्रिया कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है?
मण्डितपुत्र! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त हैं? जैसे अनुपरत-कायक्रिया-विरति-रहित व्यक्ति की काया की प्रवृत्ति और दुष्प्रयुक्त-कायक्रिया-इन्द्रिय और मन के विषयों में आसक्त व्यक्ति
की काया की प्रवृत्ति। १३६. भन्ते! आधिकरणिकी क्रिया कितने प्रकार की प्रज्ञप्त हैं? मण्डितपुत्र! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त हैं, जैसे-संयोजनाधिकरणक्रिया पूर्व निर्मित भागों को जोड़कर शस्त्र-निर्माण करने की क्रिया और निर्वर्तनाधिकरणक्रिया-नए सिरे से शस्त्र-निर्माण
करने की क्रिया। १३७. भन्ते! प्रादोषिकी क्रिया कितने प्रकार की प्रज्ञप्त हैं?
मण्डितपुत्र! वह दो प्रकार की प्रज्ञप्त हैं, जैसे-जीव-प्रादोषिकी और अजीव-प्रादोषिकी।
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