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भगवती सूत्र
श. २ : उ. १ : सू. ४८,४९ द्रव्यतः सिद्ध एक और सान्त है। क्षेत्रतः सिद्ध असंख्येय-प्रदेशी है, आकाश के असंख्येय प्रदेशों में अवगाहन किए हुए है और वह अन्त-सहित है। कालतः सिद्ध सादि अपर्यवसित है और उसका अन्त नहीं है। भावतः सिद्ध में अनन्त ज्ञान-पर्यव, अनन्त दर्शन-पर्यव, अनन्त अगुरुलघु-पर्यव हैं और उसका अन्त नहीं है, वह अनन्त है। स्कन्दक! इसलिए द्रव्यतः सिद्ध सान्त है, श्रेत्रतः सिद्ध सान्त है, कालतः सिद्ध अनन्त है, भावतः सिद्ध अनन्त है। ४९. स्कन्दक! तुम्हारे मन में जो इस प्रकार का आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक, अभिलाषात्मक,
मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआकिस मरण से मरता हुआ जीव बढ़ता है अथवा घटता है? उसका भी यह अर्थ है-स्कन्दक! मैंने मरण दो प्रकार का बतलाया है, जैसे-बाल-मरण और पण्डित-मरण। वह बाल-मरण क्या है? बाल-मरण बारह प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे१. वलय-मरण-संयम-जीवन से च्युत होकर मरना । २. वशात-मरण-इन्द्रियों के वशवर्ती होकर मरना। ३. अन्तःशल्य-मरण-माया आदि आन्तरिक शल्य की दशा में मरना। ४. तद्भव-मरण-तिर्यंच या मनुष्य भव में विद्यमान प्राणी पुनः तद्भवयोग्य- तिर्यंच या मनुष्य भवयोग्य आयुष्य का बंध कर वर्तमान आयु के क्षय होने पर मरता है, उसका मरण तद्भवमरण है। ५. गिरि-पतन-पर्वत से गिरकर मरना। ६. तरु-पतन-वृक्ष से गिरकर मरना। ७. जलन-प्रवेश-जल में डूब कर मरना। ८. ज्वलन-प्रवेश-अग्नि में प्रवेश कर मरना। ९. विष-भक्षण-जहर खाकर मरना। १०. शस्रावपाटन-छूरी आदि शस्त्रों से शरीर को विदीर्ण कर मरना। ११. वैहानश-गले में फांसी लगा वृक्ष की शाखा से लटक कर मरना।
१२. गृद्ध-स्पृष्ट-गीध द्वारा मांस नोचे जाने पर मरना। स्कन्दक! इस बारह प्रकार के बालमरण से मरता हुआ जीव नैरयिक के अनन्त भव-ग्रहण से अपने आपको संयोजित करता है, तिर्यंच के अनन्त भव-ग्रहण से अपने आप को संयोजित करता है, मनुष्य के अनन्त भवग्रहण से अपने आपको संयोजित करता है, देव के अनन्त भव-ग्रहण से अपने आपको
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