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श. १ : उ. १० : सू. ४४२
भगवती सूत्र अछिन्न, भिद्यमान अभिन्न, दह्यमान अदग्ध, म्रियमाण अमृत, निर्जीयमाण अनिर्जीर्ण है। दो परमाणु-पुद्गलों की एक संहति नहीं होती, दो परमाणु-पुद्गलों की एक संहति किस कारण से नहीं होती? दो परमाणु-पुद्गलों में स्नेहकाय नहीं होता; इसलिए दो परमाणु-पुद्गलों की एक संहति नहीं होती। तीन परमाणु-पुद्गलों की एक संहति होती है, तीन परमाणु-पुद्गलों की एक संहति किस कारण से होती है? तीन परमाणु-पुद्गलों में स्नेहकाय होता है, इसलिए तीन परमाणु-पुद्गलों की एक संहति नहीं होती। वे टूटने पर दो या तीन भागों में विभक्त होते हैं।
दो भागों में विभक्त होने पर एक ओर डेढ़ परमाणु-पुद्गल होता है, दूसरी ओर भी डेढ़ परमाणु-पुद्गल होता है। तीन भागों में विभक्त होने पर वे तीन परमाणु-पुद्गल हो जाते हैं। चार परमाणु-पुद्गल भी इसी प्रकार वक्तव्य हैं। पांच परमाणु-पुद्गलों में एक संहति होती है वे एकरूप में संहत होकर दुःख-रूप में परिणत होते हैं। वह दुःख भी शाश्वत है और सदा संगठित रूप में उपचित तथा अपचित होता है। बोलने से पहले भाषा भाषा होती है, बोलते समय भाषा अभाषा होती है और बोलने का समय व्यतिक्रान्त होने पर बोली गई भाषा भाषा है। बोलने से पहले जो भाषा भाषा है, बोलते समय भाषा अभाषा है और बोलने का समय व्यतिक्रान्त हो जाने पर बोली गई भाषा भाषा है। क्या वह जो बोल रहा है, उसके भाषा है? जो नहीं बोल रहा है, उसके भाषा है? वह जो नहीं बोल रहा है, उसके भाषा है। जो बोल रहा है, उसके भाषा नहीं है। क्रिया करने से पहले क्रिया दुःखकर होती है, क्रियमाण क्रिया दुःखकर नहीं होती, क्रिया का समय व्यतिक्रान्त होने पर कृत क्रिया दुःखकर होती है। जो यह क्रिया करने से पहले दुःखकर होती है, क्रियमाण क्रिया दुःखकर नहीं होती, क्रिया का समय व्यतिक्रान्त होने पर कृत क्रिया दुःखकर होती है। क्या वह करने से दुःखकर होती है? न करने से दुःखकर होती है? न करने से वह दुःखकर होती है। करने से वह दुःखकर नहीं होती-ऐसा कहा जा सकता है। दुःख कृत्य नहीं है, दुःख स्पृश्य नहीं है, दुःख अक्रियमाण कृत है, प्राण, भूत, जीव और सत्व बिना किए-बिना लिए भी वेदना का अनुभव करते हैं-ऐसा कहा जा सकता है।
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