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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ५३. अथिर नाम सूं तो जीव अथर कहाणो, सरीर अथिर जाबक ढीलो पावें।
दुभ नाम उदे जीव दुभ कहाणों, नाभ नीचलो सरीर पाडूओ थावे ।।
५४. दुभग नाम थकी जीव हुवें दोभागी, अणगमतो लागें न गमें लोकां में लिगार।
दुःस्वर नाम थकी जीव हुवो दुस्वरीयों, तिणरो कंठ असुर नही श्रीकार।।
५५. अणादेज नाम करम रा उदा थी, तिणरो वचन कोइ न करें अंगीकार ।
अजस नाम थकी जीव हुवो अजसीयों, तिणरो अजस बोलें लोक वारंवार।।
५६. अपघात नाम कर्म रा उदे थी, पेलो जीते में आप पांमें घात।
दुभ गंइ नाम कर्म संजोगे, तिणरी चाल किण ही में दीठी न सुहात ।।
५७. नीच गोत उदें नीच हुवो लोकां में, उंच गोत तणा तिणरी गिणे छे छोत।
नीच गोत थकी जीव हर्ष न पांमें, पोता रो संचीयों उदे आयों नीच गोत।।
५८. पाप तणी प्रकत ओलखावण काजे, जोड़ कीधी श्री दुवारा सहर मझार।
संवत अठारे पचावनें वरसें, जेठ सुदि तीज में वृहसपतवार ।।