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ढाल : ४
पुण्य शुभ योग से निष्पन्न होता है। १. शुभ योग जिन-आज्ञा में है। वह निर्जरा की करनी है, उससे पुण्य सहज ही आकर लगते हैं।
२. जिस करनी में निर्जरा होती है, उसकी आज्ञा स्वयं जिन भगवान देते हैं। निर्जरा की करनी करते समय पुण्य अपने आप उत्पन्न (संचय) होता है, जिस तरह गेहूं के साथ भूसा।
३. जहां पुण्य निष्पन्न होता है, वहां निर्जरा होती है। उस करनी को निरवद्य जानें। सावध करनी में पुण्य निष्पन्न नहीं होता। चतुर व विज्ञ जन उसे सुनें।
४. हिंसा करने से, झूठ बोलने से तथा साधु को अशुद्ध आहार देने से इन तीन बातों से जीव के अल्प आयुष्य का बंध होता है। यह अल्प आयुष्य पाप कर्म की प्रकृति
५-६. जीवों की हिंसा न करना, झूठ नहीं बोलना और तथारूप श्रमण-निर्ग्रन्थों को चारों प्रकार के प्रासुक निर्दोष आहार देना इन तीनों बातों से दीर्घ आयुष्य का बंध होता है। पुण्य निष्पन्न होता है। यह ठाणं सूत्र के तीसरे स्थान (सू. १७-१८) में उल्लिखित है।
७. हिंसा करने से, झूठ बोलने से, साधुओं की अवहेलना और निंदा कर उनको अप्रिय, अमनोज्ञ (अरुचिकर) आहार देने से अशुभ दीर्घ आयुष्य का बंध होता है।