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________________ नव पदार्थ १५. धमास्तिकाय के तीन भेद हैं स्कन्ध, देश और प्रदेश । सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्कन्ध कहते हैं । वह जरा भी न्यून नहीं हैं । २९ १६. एक प्रदेश से लगाकर एक प्रदेश कम तक स्कन्ध नहीं, वहां तक देश और प्रदेश होते हैं । उसको कोई स्कन्ध न समझें । १७. धर्मास्तिकाय धूप और छांह की तरह संलग्न रूप में फैली हुई है। न तो उसके चातुर्दिक कोई घेरा है और न कोई संधि ( जोड़) ही । १८. पुद्गलास्तिकाय से जो एक प्रदेश पुद्गल अलग हो जाता है उसको जिन भगवान ने परमाणु कहा है । उस सूक्ष्म परमाणु से धर्मास्तिकाय मापा गया है। १९. एक परमाणु जितने धर्मास्तिकाय का स्पर्श करता है उतने को जिन भगवान ने प्रदेश कहा है। इस माप से धर्मास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश होते हैं । २०. इस माप से धर्मास्तिकाय असंख्य प्रदेशी द्रव्य है । अधर्मास्तिकाय भी उतना ही है। इसी माप से आकाशास्तिकाय के अनन्त प्रदेश होते हैं । २१. काल अजीव द्रव्य है। उसके अनन्त द्रव्य कहे गए हैं। वे उत्पन्न हुए, होते हैं और होंगे। उनका कभी भी अन्त नहीं आएगा । २२. गत काल में अनन्त समय हुए हैं, वर्तमान एक समय है और आगामी काल में अनन्त समय होंगे। यह काल द्रव्य है । इसको पहचानो । २३. भगवान ने काल द्रव्य को निरन्तर उत्पन्न होने की अपेक्षा से शाश्वत कहा है । यह उत्पन्न होता है और विनाश को प्राप्त होता है, इस दृष्टि से इसको अशाश्वत कहा है। २४. काल द्रव्य शाश्वत नहीं है । यह प्रवाह की तरह निरन्तर उत्पन्न होता है । जो समय उत्पन्न होता है वह विनाश को प्राप्त होता है । प्रवाह रूप से काल का कभी अंत नहीं आता ।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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