SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ १५. धर्मास्ती रा तीन भेद छें, खंध नें देस परदेस आखी धर्मास्ती खंद छें, ते उंणी नही लवलेस भिक्षु वाङ्मय खण्ड - १ जी । जी ।। १६. एक प्रदेस थी आदि दे, एक प्रदेस उंणो खंध न होय जी । त्यां लग देस प्रदेस छें, तिणनें खंध म जाणजो कोय जी ।। १७. धर्मास्ती काय तों सेंथालें पड़ी, तावड़ा छांही ज्यूं एक धार जी । तिणरें वेठों नें वीटों कोइ नही, वले नही छेकी सांध लिगार जी ।। १८. पुदगलास्ती सुं प्रदेस न्यारो पड्यो, तिणनें परमाणु कह्यो जिणराय जी । तिण सूक्ष्म परमाणु थकी, तिणसूं मापी छें धर्मास्तीकाय जी ।। १९. एक परमाणूओं फरसें धर्मास्ती तिणनें प्रदेस कह्यों जिणराय जी । इण मापा सूं धर्मास्ती काय ना, असंख्याता प्रदेस हुवे ताहि जी ।। २०. तिणसूं असंख्यात प्रदेसी धर्मास्ती, अधर्मास्ती पिण इमहीज जांण जी । अनंता आकास्ती काय ना, प्रदेस इण रीत पिछांण जी ।। तेहना, द्रव्य कह्या छें अनंत जी । २१. काल पदारथ नीपना नीपजें नें नीपजसी वली, तिणरो कदेय न आवसी अंत जी ।। २२. गयें काल अनंता समां हूआ, वरतमांन समों एक जांण जी । आगमीयें कालें अनंता हुसी, ए काल द्रव्य पिछांण जी । । २३. काल द्रव्य नीपजवा आसरी, सासतो कह्यों जिणराय जी । ऊपजें नें विणसें तिण आसरी, असासतो कह्यों इण न्याय जी ।। २४. तिणसूं काल दरब नही सासता, में तो उपजे छें जेम प्रवाह जी । जे उपजे ते समों विणसें सही, तिणरो कदेय न आवे छें थाह जी ।।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy