SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ भिक्षु वाङ्मय खण्ड - १ ४२. भगवंते मोटा मोटा राजवी, प्रतिबोध्या हो आंण्या मारग ठाय । साध श्रावक धर्म वतावीयों, न सीखायो हो पडहो फेरणो ताहि ।। ४३. तो श्रेणक सीख्यो किण आगलें, भगवंत हों पूछ्यां साझें मूंन । वले न जणावें आंमना, आज्ञा विण हो करणी जांणों जबूंन ॥ ४४. वासुदेव चक्रवत मोटका, त्यांरी वरती हो तीन छ खंड में आंण । जो पडो फेरयां मुगत मिलें, तो कुण काढें हो आघो जिण धर्म जांण ॥ ४५. कोरांगण दीवादिक सिनांन नें, विसन साते हो विना मन दे छुडाय । विध ि धर्म नीपजें, तो छ खंड में हो वरजें आंण फेराय ॥ ४६. फल फूल अनंत काय नें, हिंसादिक हो अठारें पाप नें जांण । जोडी दावें पेंला नें मनें कीयां, धर्म हुवें तो हो फेरें छ खंड में आंण ॥ ४७. तीथंकर घर में थकां त्यांनें हुंता हो तीन ग्यांन विशेख | हाल हुकम थो लोक में, त्यां नही फेरयों हो पडहो सूतर देख ॥ ४८. बलदेवादिक मोटा राजवी, घर छोडी हो कीया पाप पचखांण । श्रेणक जिम पडहो न फेरीयों, जोरी दावें हों नही वरताइ आंण ॥ ४९. ब्रह्मदत चक्रवत तेहनें, चित मुनी हो प्रतिबोधण आय। साध श्रावक रो धर्म कह्यों, पडहा री हो न कही आंमना काय ॥
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy