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________________ २५६ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३३. कहें राय श्रेणक तो समकती, धर्म विना हो किम करसी ए काम। इम कहि कहि भोला लोक नें, फंद में न्हाखें हो श्रेणक रो ले नाम॥ ३४. श्रेणक में करें मुख आगलें, आमी साहमी हो मांडें खांचातांण। आप छांदे उटंका मेलतां, कुण पालें हो श्री जिणवर आंण॥ ३५. समदिष्टी तणों कोइ नाम ले, भरमा हो अणसमझ्या अजाण। तो सकंद्र समदिष्टी देवता, जिण भगता हो एका अवतारी जांण॥ ३६. ते भीड आए कोणक तणी, झूध कीधा हो तिण सावध जांण। एक कोड असी लाख उपरें, मिनखां रो हो कर दीधो घमसांण॥ ३७. श्रेणकराय फडहो फेरावीयों, ए तों जांणो हो मोटा राजा री रीत। भगवंत न सरायों तेहनें, तो किम आवें हो तिणरी परतीत॥ ३८. फडहो फेरयों हणों मती, इतरी , हो सूत्र में वात। कोड धर्म कहें श्रेणक भणी, ते तों बोलें हो चोडें झूठ मिथ्यात॥ ३९. लोकां तूं मिलती बात जांण नें, कर रह्या हो कूडी बकवाय। मिश्र कहें ते पिण अटकलां, साचा हुवें तो हो सूत्र में दे वताय॥ ४०. ए तों पुत्रादिक जायां परणीयां, ओछवादिक हो ओरी सीतला जाण। एहवो कारण कोई उपनें, श्रेणक राजा हो फेरी नगरी में आंण। ४१. ते रूकीया नही कर्म आवता, नही कटीया हो तिणरा आगला कर्म। - नरक जातो रह्यों नही, न सीखायो हों तिणनें भगवंत धर्म॥
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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