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अनुकम्पा री चौपई
२५१ ७. सौ आदमियों का पेट दर्द कर रहा है। वे तड़फ रहे हैं। जीव मिचला रहा है। सबने हाय-तोबा मचा रखा है। उन सौ व्यक्तियों को हुक्का पिलाकर साता पहुंचायी, मरने से बचाया।
८. सौ व्यक्ति जंगल में दुर्भिक्ष के कारण अन्न बिना मर रहे हैं। एक व्यक्ति ने त्रसकाय (जानवर) को मार कर उन्हें खिलाया, सौ व्यक्तियों को मरने से बचाया।
९. किसी समय सौ व्यक्ति अन्न के बिना मर रहे हैं। किसी ने सहज प्राप्त उस मृत कलेवर को खिलाकर उन्हें सकुशल रखा।
१०. सौ रोगियों को मरते हुए देखा। जो ममाई के बिना स्वस्थ नहीं हो सकते। किसी ने एक मनुष्य की ममाई (विशेष चिकित्सा) कर सौ मनुष्यों को बचाया। उन्हें साता पहुंचायी।
११. यदि जमीकंद खिलाने तथा पानी पिलाने में पाप और धर्म दोनों की स्थापना करते हैं तो अग्नि लगाने और हुक्का पिलाने जैसे सभी कार्यों में मिश्र धर्म होना चाहिए।
१२. यदि जो बचे उसमें धर्म है और जो हिंसा हुई उसमें कर्म बंध हुआ तो सातों ही दृष्टान्तों को समान रूप से समझकर पाप और धर्म कह देना चाहिए।
१३. यदि सातों में मिश्रधर्म नहीं कहते तो उनके कथन का विश्वास कैसे होगा? स्वयं ही सिद्धान्त की स्थापना करते हैं और स्वयं ही उसे उठा देते हैं। इस विपरीत श्रद्धा को कौन मानेगा?।
१४. यदि सातों ही प्रसंगों में मिश्र कहे तो लोगों को बात प्रिय नहीं लगती और मिलती बात कहे बिना उन झूठों का पक्षपात कौन करे?।
१५. एक या दो प्रसंगों में मिश्र कहते हैं। शेष सबमें मिश्र कहते हुए मूर्ख लज्जा का अनुभव करते हैं। ऐसा विपरीत मार्ग उन्होंने पकड़ लिया है। उनके पीछे मूर्ख लोग दृढ़ता से बात को तानते हैं।