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________________ अनुकम्पा री चौपई २४१ १४. जैसे आनन्द श्रावक के घर गोतम स्वामी असत्य बोले । छद्मस्थ थे अतः भूल हो गई। पर वे वीर प्रभु के सामने उपस्थित होकर शुद्ध हो गए। १५. इस प्रकार भगवान महावीर के मोहकर्म अवश्य उदय आया था। जगत प्रभु उसे टाल नहीं सके। जिनके हृदय में मिथ्यात्व बद्धमूल है। वे इस न्याय को नहीं समझ सकते। १६. यदि भगवान गोशालक को नहीं बचाते तो एक अछेरा (आश्चर्य) कम हो जाता। पर होनहार निश्चय टलती नहीं है। विवेक से समझें । १७. गोशालक को बचाने से बहुत मिथ्यात्व बढ़ा। उसने भगवान के रक्तस्राव कर दिया, और दो साधुओं की घात की । १८. यदि भगवान गोशालक को बचाने में धर्म समझते तो अपने दो साधुओं को भी बचाते । फिर यही काम करते । १९. गोशालक को बचाने में भगवान धर्म समझे और अपने दो साधुओं को नहीं बचाए, यह न्याय कैसे मिलेगा ? | २०. जगत को मरते हुए देखकर भगवान ने बीच में हाथ देकर किसी को नहीं बचाया। यदि उसमें धर्म समझते तो जरा भी विलम्ब नहीं करते, क्योंकि आप तो तीर्ण तारक जगत् प्रभु थ । थे २१. भगवती सूत्र के न्यायानुसार यह पूर्ण विवरण सहित बता दिया । कुबुद्धि कदाग्रह करते हैं और सुबुद्धि को यह अच्छा लगता है। २२. साधुओं के सामने कोई पक्षी अपने घोसले से नीचे गिर पड़े। वे कहते हैं, उसे हाथ से उठाकर पुनः वहीं रखें, तब ही दिल में दया रह सकती है। २३. तपस्वी श्रावक उपाश्रय में कायोत्सर्ग कर रहा है । चक्कर और मूर्छा के कारण गिर पड़ा। गर्दन टूटने से मरने वाला है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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