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________________ नव पदार्थ २१. स्वयंभू : जीव किसी का उत्पन्न किया हुआ नहीं है। इसी से इसका नाम 'स्वयंभू' है। जीव स्वाभाविक द्रव्य है। वह कभी विलय को प्राप्त नहीं होता। २२. सशरीरी : शरीर में रहने से जीव का नाम 'सशरीरी' है। काले, गोरे आदि की संज्ञा शरीर को लेकर ही है। २३. नायक : कर्मों का नायक होने से अपने सुख-दुःख का स्वयं उत्तरदायी होने से जीव का नाम 'नायक' है तथा न्याय का करने वाला है, विचार कर बात बोलने वाला है। २४. अन्तरात्मा : समस्त शरीर में व्याप्त रहने से जीव 'अन्तरात्मा' कहलाता है। जीव पुद्गलों में लोलीभूत (एकाकार) है, जिससे उसका (असली) स्वरूप दब रहा है। २५. द्रव्य जीव शाश्वत और एक है। भगवान ने उसके भाव अनेक कहे हैं। वे लक्षण, गुण और पर्याय कहलाते हैं। वे (लक्षण, गुण व पर्याय) भाव जीव हैं। २६. औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इस तरह जिन भगवान ने पांच भाव बतलाए है। उनके स्वभाव अलग-अलग कहे हैं। २७. आठ कर्मों का उदय तो अजीव है। उनके उदय से निष्पन्न होने वाला 'उदय-भाव जीव' है, उसके भिन्न-भिन्न अनेक नाम हैं। २८. उपशम तो एक मोहनीय कर्म का होता है। उससे अनेक गुण निष्पन्न होते हैं, वह 'उपशम-भाव जीव' है। उसके भी भिन्न-भिन्न नाम है। २९. क्षय तो आठ ही कर्मों का होता है। जब परम क्षायक गुण निष्पन्न होता है, वह क्षायक गुण भाव जीव है। वह सदा उज्ज्वल रहता है। ३०. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन चार कर्मों का क्षयोपशम होता है, जब उज्ज्वल क्षयोपशम भाव निष्पन्न होता है। वह भी निर्दोष भाव जीव है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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