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________________ २३८ ४. ६. ७. भिक्षु वाङ्मय खण्ड- १ ग्रहस्थ बोल्या वाय । साध पधारया देख नें जी, थे हाथ फेरो पेट उपरें जी, में श्रावक जीवा जाय ॥ जब कहें हाथ न फेरणों जी, ए साधु नें कहिता जीव वचावणों तो, बोंले नें गोसाला नें वीर वचावीयो जी, तिणमें सों श्रावक नही वचावीयां, त्यांरी सरधा से कल्पें बदलो कहें छें निकल्यों जगनाथ । गोसाला रें कारणें जी, लब्द फोडी सों श्रावक मरता देंख नें, ते कांय न फेरों हाथ ॥ ८. धर्म कहें भगवंत नें, पोतें कांय छोडी रीत । सों श्रावक नही वचावीयां, त्यांरी कुण मांनें परतीत ॥ १०. इम कह्यां जाब न ऊपजें, जब कूडी करें हिवें साध कहें तुम्हें सांभलों जी, गोसाला रों १३. छदमस्थ चूक पड्यों तकों निरवद्य कोई म जांणजो जी, साख्यात । गोसाला नें वचावीयां में, धर्म कहें तों सों श्रावक नहीं वचावीयां, त्यांरी विगडी सरधा वात॥ नांहि । कांय ॥ धर्म । भर्म ॥ ११. साध नें लब्द न फोडणी जी, कह्यों सूत्र भगोती रे पिण मोह कर्म वस राग थी जी, लीयों गोसालों बकवाय । न्याय ॥ १२. छ लेस्या हूंती जद वीर में जी, हूंता आठोई छदमस्थ चूका तिण समें जी, मूर्ख थापें जी, मूंढें आंणें अकल हीया री मांहि । वचाय ॥ कर्म । धर्म ॥ 1 बोल । खोल ॥
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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