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________________ अनुकम्पा री चौपई २१३ ३. लोक थर-थर कांपने लगे और अपने इष्ट देव का स्मरण करने लगे। पर अरणक श्रावक भयभीत नहीं हुआ, वह कायोत्सर्ग में स्थित हो गया। ४. उसने सागारी अनशन कर लिया। धर्म-ध्यान में एकाग्र चित्त हो गया। सबको डूबते हुए देखकर उसने कोई अनुकंपा नहीं की। ५. अरणक श्रावक को विचलित करने के लिए देवता बढ़-चढ़कर बोल रहा है। यदि अरणक धर्म नहीं छोड़ेगा तो मैं जहाज को पानी में डुबो दूंगा। ६. मैं जहाज को ऊपर उठाकर औंधी करके सबकी घात करूंगा। अंधेरी अमावस में जन्म लेने वाले हे अरणक! तूं मेरी बात को मान ले। ७. मेरे ज्ञान, दर्शन और चारित्र में इसके कारण कोई विघ्न नहीं होगा, क्योंकि मैं भगवान का सेवक हूं। मुझे कोई विचलित नहीं कर सकता। ८. लोगों को बिल-बिलाहट करते देखकर भी अरणक का चेहरा नहीं बिगड़ा। उसने किसी की भी मोह-अनुकंपा नहीं की, तब देवता ने उपसर्ग दूर कर दिया। ९. देवता अरणक को धन्य धन्य कहने लगा। तूं तो जीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता है। स्वयं इन्द्र ने सुधर्मा सभा में तुम्हारी प्रशंसा की है। १०. अरणक श्रावक के गुण देवता को बहुत पसंद आए। यह देखकर दो कुंडलों की जोड़ी देकर देव जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया। ११. नमिराजर्षि ने चारित्र ग्रहण किया और वह बाग में आकर खडे हो गए। इन्द्र उसकी परीक्षा लेने आया और बोला - १२. तुम्हारी मिथिला आग से जल रही है। एक बार तुम उसकी ओर देखो। जलते हुए अंत:पुर को तुम छोड़ रहे हो, यह तुम्हारे लिए श्रेय नहीं है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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