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________________ अनुकम्पा री चौपई २०९ १२. गृहस्थ का शरीर ममता में है और साधु समता में स्थित है। वे धर्म और शुक्लध्यान ध्याते रहते हैं। उन्हें किसी के मरने की चिन्ता नहीं होती। १३. इहलोकवांछा, परलोकवांछा, जीवनवांछा, मरणवांछा और कामभोगवांछा-ये पांचों ही अतिचार हैं। इनकी वांछा करने में तनिक भी धर्म नहीं है। १४. अपने जीवन की वांछा करे वह भी पाप है फिर दूसरों के जीवन की वांछा का संताप कौन करेगा? अज्ञानी अधिक जीवन की वांछा करता है। जो समभाव रखता है वह ज्ञानी है। १५-१६. वायु, वर्षा, सर्दी, गर्मी, राज्य में क्षेम, सुकाल और उपद्रव की तत्काल समाप्ति - इन सात बातों के लिए न इच्छा करे और न अनिच्छा करे। इन पूर्वोक्त सात बातों का विस्तार जिसने अच्छी तरह से जान लिया वही अनगार है। जिसके दिल में समता आ गई, वह ये सात बातें हो या न हों कुछ नहीं चाहता। १७. एक के थप्पड़ मारता है और दूसरे का उपद्रव मिटा देता है - ये दोनों ही राग द्वेष के व्यवहार हैं। दशवैकालिक सूत्र (अ. ७ गाथा ५०) को देखलो। १८-१९. साधु नाव में आकर बैठा। नाविक ने नाव चलाई। नाव में छिद्र हो गए हैं। पानी भरने लगा है, यह केवल साधु ने देखा, अन्य किसी ने नहीं जाना। साधु स्वयं डूब रहा है। दूसरे लोग भी डूबते जा रहे हैं, परन्तु किसी के प्रति अनुकम्पा नहीं लाए, क्योंकि बताने से व्रत भंग होता है, इस कथन का साक्षी है आचारांग (आ. चू. अ. ३, उ. १, सूत्र २२)। २०. यदि संकेत करके साधु बताता है तो लोक कुशलक्षेम पूर्वक घर पहुंच जाते हैं। लोग डूब जाए, साधु यह भी नहीं चाहता और लोग जीवित रहे - यह चाहता तो उस छिद्र को तत्काल बता देता। २१. ऐसे अवसरों पर जो मौन धारण करते हैं, वे संत हैं। वे ही संसार का अन्त करते हैं। वे परिणामों को मजबूत रखते हैं और धर्म-ध्यान में स्थित रहते हैं।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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