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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३. भगोती बीसमा सतक माहि, बीजें उदेशें कह्यों जिणराय।
जीवरा तेवीस नाम, गुण निपन कह्या , तांम।।
४. जीवेतिवा जीवरो नाम, आउखा नें वले जीवें ताम।
ओ तो भावें जीव संसारी, तिणनें बुधवंत लीजों विचारी।।
५. जीवत्थिकाय जीवरो नाम, देह धरें , तेह भणी आंम।
प्रदेसा रा समुह ते काय, पुदगल रा समुह झेलें छे ताहि ।।
६. सास उसास लेवें छे तांम, तिणसु पाणेतिवा जीव नाम।
भूएतिवा कह्यों इण न्याय, सदा छे तिहु काल रें मांहि ।।
७. सतेतिवा कह्यों इण न्याय, सुभासुभ पोतें छे ताहि ।
विनूतीवा विषं रा जांण, सबदादिक लीया सर्व पिछांण।।
८. वेयातिवा जीव रो नाम, सुख दुख वेदें छे ठाम ठांम।
ते तो चेतन सरूप , जीव, पुदगल रो सवादी सदीव।।
९.
चेयातिवा जीवरों नाम, पुदगल नी रचणा करें तांम। विवध प्रकारे रचें रूप, ते तों मूंडा ने भला अनूप ।।
१०. जेयातिवा नाम श्रीकार, कर्म रिपू नों जीपणहार।
तिणरो प्राकम सकत अतंत, थोड़ा में करे करमां रो अंत ।।
११. आयातिवा नाम इण न्याय, सर्व लोक फरस्यों , ताहि।
जन्म मरण कीया ठाम ठांम, कठे पाम्यों नही आराम ।।