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जीव पदार्थ
दोहा
१. जिनशासन के अधिपति श्री वीर प्रभु और गणधर गौतम स्वामी को नमस्कार करता हूं। इन तरण-तारण पुरुषों का प्रतिदिन स्मरण करना चाहिए।
२. इन पुरुषों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से जीव आदि नव पदार्थों का स्वरूप-निरूपण किया है। हलुकर्मी जीव उनकी पूरे मनोयोग पूर्वक ओलख (पहचान) करते हैं।
३. जीव-अजीव की पहचान हुए बिना मन का भ्रम नहीं मिटता। सम्यक्त्व आए बिना जीव के आने वाले कर्म नहीं रूकते हैं।
४. जो प्राणी नव ही पदार्थों में पृथक्-पृथक् रूप में प्रत्येक में यथातथ्य श्रद्धा रखते हैं, वे निश्चय ही सम्यग्दृष्टि जीव हैं। उन्होंने मुक्ति की नींव डाल दी है।
५. अब नव ही पदार्थ की पहचान के लिए उनके भिन्न-भिन्न प्रकार बतलाता हूं। पहले जीव पदार्थ की पहचान कराता हूं। उसे सहर्ष सुनें।
ढाल : १
१. जीव द्रव्य प्रत्यक्ष शाश्वत है। उसकी संख्या तिलमात्र भी कभी नहीं घटती। उसके असंख्यात प्रदेशों में लेशमात्र भी घट-बढ़ नहीं होती।
२. इसीलिए द्रव्यतः जीव एक कहा गया है। भाव जीव के अनेक भेद है। भगवान ने उसका बहुत विस्तृत वर्णन किया है। बुद्धिमान विचार कर द्रव्य जीव और भाव जीव को जान लेते हैं।