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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ८. प्रकतबंध , करमां री जूजड़, ते करमां रा सभाव रे न्यायो जी।
बांधी , तिण समें बंध ,, जेसी बांधी तेसी उदें आयो जी।।
९. तिण प्रकत में मापी छे काल सूं, इतरा काल तांइ रहसी तांमो जी।
पछे तो प्रकत विललावसी, थित सूं प्रकत बंध , आंमो जी।।
१०. अनुभाग बंध रस विपाक छे, जेंसों जेंसों रस देसी ताह्यों जी।
ते पिण प्रकत नों बंध रस कह्यों, बांध्या तेसाइज उदें आयो जी।।
११. प्रदेश बंध कह्यों प्रकत बंध तणो, प्रकत-प्रकत रा अनंत प्रदेसो जी।
ते लोलीभूत जीव सूं होय रह्या, प्रकत बंध ओळखाई विसेसो जी।।
१२. आठ करमां री प्रकत में जूजूई, एकीकी रा अनंत प्रदेसो जी।
ते एकीकी प्रदेस जीव रे, लोलीभूत हुवा छे विशेषो जी।।
१३. ग्यांनावर्णी दर्शवरी वेदनी, वले आठमों कर्म अंतरायो जी।
यांरी थित छे सगलारी सारिषी, ते सुणजो चित्त ल्यायो जी।।
१४. थित छे यां च्यारू कर्मी तणी, अंतरमुहुरत परमाणो जी।
उतकष्टी थित यां च्यारूं कर्मा तणी, तीस कोडा कोडा सागर जाणों जी।।
१५. थित दरसण मोहणी कर्म नी, जगन तों अंतरमोहरत प्रमाणों जी।
उतकष्टी थित छे एहनी, सितर कोडा कोड सागर जाणों जी।।
१६. जिगन थित चारित मोहणी कर्म नीं, अंतरमोहरत कही जगदीसो जी।
उतकष्टी थित छे एहनी, सागर कोडा कोड चालीसो जी।।
१७. थित कही छे आउखा करम नीं, जिगन अंतरमहरत होयो जी।
उतकष्टी थित सागर तेतीस नी, आगे थित आउखा रो न कोयो जी।।