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________________ नव पदार्थ १४७ ५४. पुद्गल के बिना वीर्य शक्ति नहीं होती। पुद्गल के बिना योग व्यापार भी नहीं होता। जब तक जीव से पुद्गल लगे रहते हैं तब तक संसार में योग वीर्य रहता है। ५५. वीर्य जीव का अपना गुण है और यह अन्तराय कर्म अलग होने से होता है। वह वीर्य निश्चयतः भाव-जीव है। उसमें जरा भी शंका न करें। ५६. उपशम केवल मोह कर्म का होता है। उससे दो उपशम-भाव निष्पन्न होते हैं (१) उपशम सम्यक्त्व (२) उपशम चारित्र । वह जीव की उज्ज्वलता है। ५७. दर्शनमोहनीय कर्म का उपशम होने से उपशम सम्यक्त्व निधि निष्पन्न होती है। चारित्रमोहनीय कर्म का उपशम होने से प्रधान उपशम चारित्र प्रकट होता है। ५८. चार घनघाती कर्मों का क्षय होने से क्षायिक-भाव प्रकट होता है। वे सर्वथा उज्ज्वल गुण हैं। उनका स्वभाव भिन्न-भिन्न हैं। ५९. ज्ञानावरणीय कर्म का सर्वथा क्षय होने से केवलज्ञान उत्पन्न होता है और दर्शनावरणीय कर्म का सर्वथा क्षय होने से प्रधान केवलदर्शन उत्पन्न होता है। ६०. मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय होने से उसके अंशमात्र भी न रहने से क्षायिक सम्यक्त्व प्रकट होता है और यथाख्यात क्षायिक चारित्र प्रकट होता है। ६१. दर्शनमोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय होने से प्रधान क्षायिक सम्यक्त्व प्रकट होता है। चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय होने से क्षायिक चारित्र निधि प्राप्त होती है। ६२. अंतराय कर्म के अलग होने से क्षायिक वीर्य-शक्ति उत्पन्न होती है तथा पांचों ही क्षायिक लब्धियां प्रकट होती हैं। किसी भी बात की अंतराय नहीं रहती। ६३. उपशम, क्षायिक और क्षयोपशम भाव निर्मल हैं। वे जीव के निर्दोष स्वगण हैं। उनसे जीव अंशतः उज्ज्वल होता है और सर्वरूप उज्ज्वल होना, वह मोक्ष है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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