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________________ नव पदार्थ १३. उत्तराध्ययन सूत्र के उनतीसवें अध्ययन (सूत्र १४) में प्रत्याख्यान का फल आश्रव का रुकना नए कर्मों के प्रवेश का बंद होना बतलाया है। १४. उत्तराध्ययन सूत्र के तीसवें अध्ययन (श्लोक ५,६) में कहा है कि जिस तरह नाले को रोक देने से पानी का आना रूक जाता है, उसी तरह आश्रव के रोक देने से नए कर्म नहीं आते। १५. उत्तराध्ययन सूत्र के उन्नीसवें अध्ययन (श्लोक ९३) में अशुभ द्वारों को रोकने का उपदेश है। कर्म आने के मार्ग को रोक देने से पाप नहीं लगता। १६. दशवैकालिक सूत्र के तृतीय अध्ययन (श्लोक ११) में कहा है कि आश्रवद्वार को बन्द कर देने से पाप कर्म जरा भी नहीं बंधते। (इसका स्पष्ट कथन चतुर्थ अध्ययन (श्लोक ९) में भी प्राप्त होता है।) १७. जो पांचों आश्रव-द्वारों का निरोध करता है, वह भिक्षु महा- अनगार है। यह उल्लेख दशवैकालिक सूत्र (अध्ययन १०, श्लोक ५) में हैं। इसका निश्चय सूत्र देखकर करो। १८. उत्तराध्ययन सूत्र के उनतीसवें अध्ययन (सूत्र ७३) में क्रमशः मनोयोग, वचनयोग और काययोग आश्रव के रूंधने की बात आई है। वहां मन, वचन और काय के शुद्ध योगों के संवरण की बात है। १९. प्रश्नव्याकरण सूत्र में पांच आश्रव-द्वार और पांच संवर-द्वार कहे गए हैं और इन दोनों का वहां बहुत विस्तार से वर्णन है। २०. स्थानाङ्ग के पांचवें स्थान (५.३.४६७) में आश्रव-द्वार-प्रतिक्रमण का उल्लेख है। प्रतिक्रमण कर लेने पर आश्रव-द्वार बन्द हो जाते हैं, जिससे फिर पाप-कर्म बिलकुल नहीं लगते। २१-२२. भगवान ने आश्रव को फूटी नौका का उदाहरण देकर समझाया है। इसका विस्तार भगवती सूत्र के तृतीय शतक के तृतीय उद्देशक तथा उसी सूत्र के पहले
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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