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भरत चरित
२. ऋषभ जिनेश्वर ने इस प्रकार कहा- तुम ध्यान लगाकर सुनो। बाहुबल इसी जंगल में कायोत्सर्ग में स्थित है। वह तीव्र अहंकार से ग्रस्त हो गया है।
३. उसने चरित्र लेकर अपने मन में चिंतन किया। मेरे अट्ठानबे छोटे भाइयों ने मेरे से पहले चारित्र ग्रहण कर लिया। मैं उनको वंदना कैसे करूं। वह इस प्रकार के अहंकार से ग्रसित हो गया है।
४. उसके एक वर्ष की तपस्या हो गई है। वह निर्मल ध्यान की आराधना कर रहा है, पर अभिमान के कारण केवलज्ञान अटक गया है।
५. यह वचन सुनकर ब्राह्मी और सुंदरी ऋषभ जिनेंद्र के पास आई। हाथ जोड़कर वंदना कर चिंतनपूर्वक बोलीं।
६. स्वामिन् आप कृपा कर अनुमति दें तो हम दोनों जाएं और बाहुबल को समझा-बुझाकर उसे सन्मार्ग पर ले आएं।