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दोहा
१. दोनों भाइयों की सेना आमने-सामने हो गई। उनके सामने छोटे-बड़े की कोई बात नहीं रही। दोनों संग्राम करने के लिए तैयार हो गए।
२. इस समय शक्रेंद्र ने मन में सोचा - ये दोनों भाई ऋषभदेवजी के पुत्र हैं | ये आपस में संग्राम करते हैं यह उचित काम नहीं है ।
३-४. अभी तो तीसरा आरा है, यौगलिक धर्म भी ज्यादा दूर नहीं हुआ है। अभी चौथा आरा नहीं लगा है। उससे पहले ही ऐसा कार्य हो रहा है तो अब मैं दोनों को समझाऊं ऐसा निश्चय कर इंद्र आया। दोनों सेनाओं के बीच अपना डेरा लगा दिया ।
५.
दोनों भाइयों को बुलाकर इंद्र ने कहा- आप मनुष्यों को क्यों मरवा रहे हैं? किस लिए संग्राम कर रहे हैं ? |
६. राज तो आपको चाहिए फिर दूसरों को क्यों मरवा रहे हैं। दोनों भयमुक्त होकर परस्पर युद्ध करें।
७. जो जीतेगा वह राज्य करेगा। मैं तुम्हारा साक्षी रहूंगा । व्यर्थ में अन्य लोगों को क्यों मरवाते हैं ? |
८. दोनों भाइयों ने इंद्र के वचन को मान्य कर लिया और परस्पर लड़ने लगे । अब किसकी हार-जीत होती है उसे चित्त लगाकर सुनो।
ढाळ : ११
सचमुच संसार में लोभ बहुत बुरा है I १. ऋषभ जिनेंद्र के पुत्र भरत और बाहुबल राज्य लक्ष्मी के लिए परस्पर संग्राम करने लगे।