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भरत चरित
१२. उन्होंने दूत को सत्कार-सम्मान नहीं दिया। तब दूत अत्यंत रुष्ट होकर, मन में अभिमान धारण करके, कुपित होकर चल पड़ा।
१३. वहां से निकलकर दूत वापिस भरतजी के पास आया और अत्यंत विनय भक्तिपूर्वक बद्धांजली मस्तक पर टिकाकर खड़े-खड़े निवेदन किया।
१४. बाहुबल ने जो वचन कहे विस्तारपूर्वक सुना दिए। वे वचन सुनकर भरतजी ने संग्राम की तैयारी कर बहली के पास अपनी सेना के डेरे लगा दिए।
१५. वे संग्राम करने के लिए सज्ज तो हो गए पर यह जानते हैं कि इससे कर्मों का बंधन होता है। वे राज्य की विडंबना को भी जानते हैं, अंत में इसे छोड़कर धर्म की आराधना कर आठों कर्म खपाकर मोक्ष जाएंगे।