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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ६. सासन श्री रिषभदेव रो, भरत जी दीपायों ठाम ठाम हो।
घणा जीवां ने तारीया, हलूकर्मी जीवां ने गांम गांम हो।।
७. उगे उगे में उगीया, त्यां कीयों अतंत उद्योत हो।
रिषभदेवजी रा कुल मझे, कीधो दिन दिन इधिकी जोत हो।।
८. लोकीक लेखें रिषभ जिणंद रे, भरतजी हूआ सपूत हो।
धर्म लेखें पिण सपूत छ, त्यां सासण दीपायो अद्भूत हो।
९. सुखे समाधे विहार करता थका, करता थका उपगार हो।
आउखों नेडों आयो जांणनें, करें संथारा री त्यार हो।।
१०. अष्टापद पर्वत तिहां आवीया, तिण उपर चढीया तिण वार हो।
मेघ घन सिला. रलीयांमणी, पुढवी सिला श्रीकार हो।।
११. ते पुढवी सिला पडिलेहनें, तिण उपर बेसें तिण वार हो।
च्यारूं आहार भरत जी पचखनें, कीधो पादुगमन संथार हो।।
१२. आउखा रो काल अणवांछता, भरत जी केवलग्यांनी ताहि हो।
हिवें गणती कहूं त्यांरा वरस री, ते सांभलजों चित्त ल्याय हो।
१३. सितंतर लाख पूर्व लगें, रह्या कुमारपणे ग्रहवास हो।
एक सहंस वरस लगें रह्या, मंडलीक राजापणे तास हो।
१४. एक सहस वरस उणा पणें, छ लाख पूर्व लग जांण हो।
चक्रवत पदवी भोगवी, छ खंड में वरती आंण हो।।
१५. एक लाख पूर्व लगें, पाली समण परजाय हो। __कांयक उणा लाख पूर्व लगें, केवल पर्याय पाली ताहि हो।।
१६. सर्व आउखों भरत जी तणो, चोरासी लाख पूर्व जाण हो।
एक मास तणों संथारो करे, त्यां त्याग दीयों भात पांण हो।