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भरत चरित
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३. दस हजार राजे बड़े संत बन गए। उनके पदकमलों में नमन करने से अगाध धर्म होता है ।
४. अंतर्मन में परम संवेग आया। संसार कटु लगने लगा। दस हजार राजे भरतजी के पास बड़े अणगार बन गए।
५. उन्होंने सिंहवृत्ति से संयम लिया । वे प्रत्यक्ष सूरवीर हैं। वे ज्ञान के आगर, बुद्धि सागर तथा लोक - विख्यात हैं ।
६. वे पूर्ण जातिवान्, कुलवान्, बलवान्, रूपवान्, विनयवान् तथा साहसिक हैं । परीषह उत्पन्न होने पर अडिग मजबूत रहने वाले हैं। उन्होंने मुक्ति को नजदीक कर लिया है।
७. पांच सुमति, तीन गुप्ति, पंच आचार को मेरु पर्वत की तरह धीरता से धारण करने लगे । किंचित् भी विचलित नहीं हुए ।
८. बयालीस दोषों को टालकर निर्दोष आहार ग्रहण करते हैं। गाय की तरह गोचरी - भिक्षा करते हैं। छह ही काय के जीवों के प्रति दयालु हैं ।
९. नौ बाड़ सहित शीलव्रत, दसविध यतिधर्म तथा बारहविध तप को तपते हुए वे बड़े अच्छे वीर साधु हुए।
१०. ग्राम, नगर, निवेश, पाटण में अप्रतिबद्ध विहार करते हुए साधूचित क्रिया का अनुपालन करते हुए किसी से रागानुबंध नहीं रखते हैं।
११. शत्रु और मित्र में समभाव रखने वाले, पंचेंद्रिय विषयों का वर्जन करने वाले गुणरत्नों के भंडार सभी संतों में शिरोमणि हैं।
१२. माया, ममता, चार कषाय तथा चार विकथा का वर्जन करते हुए समता रस का पान करते हैं।