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भरत चरित
३९९ ४. तब ऋषभ जिनेश्वर ने कहा- भरत! तू चित्त को स्थिर रखकर सुन, बाहर त्रिदंडधारी मरीची नाम का तुम्हारा पुत्र है, यह चौबीसवां तीर्थंकर होगा।
५. उससे पहले यह वासुदेव और चक्रवर्ती की दो पदवियां और पाएगा। असंख्य भव करने के बाद यह अंतिम चौबीसवां वीर जिनेंद्र होगा।
६. यह वचन सुनकर भरतजी मन में हर्षित हुए। आपने कहा वह सत्य वचन है। मेरे मन में कोई शंका नहीं है। यह चौबीसवां तीर्थंकर होगा।
७. भरतजी वंदना कर वहां से निकलकर समवसरण के बाहर आए। बाहर मरीची बैठा था। उसे कहा- तू चौबीसवें तीर्थंकर वीर के रूप में अवतार लेगा।
८. यह वचन सुनकर मरीची हर्षित हुआ, मन में आनंदित हुआ, उसका रोमरोम उत्कर्षित हुआ। उसने जाना, मैं वीर नाम का चौबीसवां तीर्थंकर होऊंगा।
९. अब ऋषभ जिनेंद्र के गणधर ने सिर झुकाकर विनय कर पूछा- स्वामिन् ! मैं आपको प्रश्न पूछता हूं। आप कृपा कर बताएं।
१०. छह खंड का बड़ा सरदार बड़ा राजा भरत नरेंद्र यहां से काल (मर) कर किस गति में जाएगा?।
११. ऋषभ जिनेश्वर ने कहा- मुनिवर! तू चित्त लगाकर सुन। भरत यहां से आयुष्य पूरा कर आठों कर्मों का क्षय कर सिद्ध गति में जाएगा।