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भरत चरित
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२. यह सोचकर ही उन्होंने एक घडियाल बंधवाया। हर घड़ी में अलग-अलग आवाज होगी तब मैं यह विचार करता रहूंगा।
३. भरत! तुम्हारे आयुष्य की घड़ी-घड़ी में एक घड़ी घट गई है। इससे मुझे गृहत्याग की स्मृति बनी रहेगी और मैं यथासमय सुखदायक संयम ग्रहण कर लूंगा।
४. इसीलिए उन्होंने एक घड़ियाल बंधवाया। उसे सुनते-सुनते कुछ समय व्यतीत हो गया। इसी बीच अपने हृदय की संभाल के लिए वे एक दूसरा उपाय भी करते हैं।
५. दो सेवकों को बुलाकर ऐसा कहते हैं- मैं दरबार में सिंहासन पर बैलूं तब तुम आकर मुझे कहना- 'भरत राजा चेतो, चेतो, चेतो!।।
६. दीक्षा लेने के निश्चय के लिए ही ये दोनों उपाय किए। पर अभी तक भोगावली कर्म उदय में हैं इसलिए राज्य मीठा लगता है।
७. जब-जब वे दरबार में आकर राजसभा में बैठते हैं तो वे दोनों सेवक उच्चारण करते हैं- 'भरत राजा! चेतो, चेतो, चेतो!'।
८. उन वचनों को सुनकर भरतजी मन में अति हर्षित होते हैं। दीक्षा लेने की मन में चाह है उसी से ऐसे उपाय किए हैं।
९. काम-भोग मनोज्ञ तो हैं पर अंतरंग में उन्हें जाल के समान जानते हैं। इसलिए भरत राजा सच्चे मन से चरित्र लेने की भावना भाते हैं।
१०. उनके ऐसे परिणाम हैं। इसीलिए उनके मनवांछित कार्य सिद्ध होते हैं। जिसके कर्म अल्प होते हैं उनके एकधार अच्छे परिणाम रहते हैं।