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दोहा १. सेवक के आने और सारी बात कहने के बाद सिंहासन से उठे। स्त्रीरत्न तथा चौसठ हजार अंत:पुर उनके साथ हो गया।
२. बत्तीस हजार नृत्यकारों से परिवृत्त होकर पूर्व दिशा की सीढ़ियों से नीचे उतर कर हाथी पर सवार हुए।
३. बत्तीस हजार राजा भी उत्तर दिशा की सीढ़ियों से नीचे उतरे। सार्थवाह आदि चारों रत्न दक्षिण दिशा से नीचे उतरे।
४. जिस प्रकार अभिषेक पीठ पर चढ़े उसी प्रकार उतरे। भरतजी हस्तीरत्न पर चढ़कर विनीता की ओर लौट रहे हैं।
५. आठ मांगलिक मुंह के सामने अनुक्रम से चल रहे हैं। विनीता में प्रवेश करते समय सारी विधि कही उसे यहां कहना चाहिए।।
६. लोगों ने उनका भरपूर सत्कार किया। अनेक प्रकार की विरुदावलियां बोलीं। पूर्वोक्त रूप से भरतजी महल में पधारे।
७. वैश्रमण नाम का कुबेर देवता जैसे मेरु पर्वत की कैलाश चोटी पर चढ़ता है उसी प्रकार भरतजी आकाश में शिखर की तरह अपने महलों में चढ़े।
ढाळ : ६१
१. अब पुण्यबली भरतजी स्नानघर में जाकर स्नान करते हैं।