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दुहा १. वळे देवता चंदण छापा दीया, तिणमें गंध सुगंध छे पूर।
वळे बहू परवत थी आंणीया, कसतूरी चंदण कपूर।।
२. त्यां करनें गातर छांटीयों, तिणरों पिण गंध अपार।
दिव्य प्रधान माला फूलां तणी, देवतां घाली गला रे मझार।।
३. कहि कहि नें कितरों कहं, तिणरों घणों विसतार।
विभूषित कीयों अंग देवतां, जांणे इंदर तणे उणीयार।।
४. राज अभीषेक कीयों भरत जी, तिणरों छे बोहत विसतार।
ते जीवाभिगम थी जांणजों, विजें पोलीया रे इधिकार।।
५. अभीषेक करावतां जू जूआ, बोल्या वचन रसाल।
राजादिक में सर्व देवता, ते सुणजों सुरत संभाल।
ढाळ : ६० (लय : जोगण रूडी बे। अरे हां)
राजंद रूडो बे, अरे हां सुग्यांनी।
पुनवंत पूरो बें। १. प्रतेख प्रतेख जू जूआ बोलें, सगलाइ राजांन।
वळे मोटे मोटे शब्दां करी, विनें सहीत देता सनमान। भरतेसर।
२. इष्टकारीवाणी वलभ बोलें, प्रीतकारी मनोहर जाण।
आसीस देता भरत नरिंद नें, वांणी बोलें छे अमीय समांण।।