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भरत चरित
१४. अभिषेकपोठ के मध्य भाग में एक दीप्तिमान् वृहद् सिंहासन रखा।
१५. उस सिंहासन का वर्णन आगम में किया गया है, उसे सूर्याभ की तरह ही
जानें।
१६. फूलों की अनेक मालाएं, गुच्छे सिंहासन पर लहरा रहे हैं।
१७. अभिषेक मंडप की पीठ तथा सिंहासन भी सूर्याभ की ही तरह जानें ।
१८. आभियौगिक देवता ने अनुपम और मनोहर मंडप की विकुर्वणा की ।
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१९. यह सब करके शीघ्र भरत राजा के पास आया और कहा कि अभिषेक मंडप तैयार है।
२०. आभियौगिक देवता से यह सुनकर भरतजी हर्षित एवं संतुष्ट हुए ।
२१. अब भरत नरेन्द्र तत्क्षण पौषधशाला से बाहर निकले ।
२२. सेवक को बुलाकर कहा- देवानुप्रिय ! पटहस्तीरत्न को सजाओ ।
२३. हाथी, घोड़े, रथ तथा पैदल चतुरंगिणी सेना को शीघ्र सज्ज करो ।
२४.
.सेवक पुरुष ने तत्काल सेना को सज्ज कर भरतजी की आज्ञा को प्रत्यर्पित
किया ।