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भरत चरित
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३. वहां सर्वप्रथम सख्यात योजन का एक मनोरम दंड बनाया।
४. उसमें से स्थूल पुद्गलों को दूर कर, सूक्ष्म पुद्गलों में से सोलह प्रकार के रत्नों को खींच लिया।
५. फिर दूसरी बार वैक्रिय समुद्घात कर रमणीय समतल भूमि का निर्माण किया।
६. मृदंग, वाद्ययंत्र, ढोल का निर्माण किया। आंगन को मक्खन सरीखा चिकना बनाया।
७. उस भूमि भाग के मध्य में अभिषेक मंडप की रचना की।
८. उस मंडप में सूर्याभदेव के मंडप की तरह सैकड़ों स्तंभ बनाए।
९. राजप्रश्नीय सूत्र में उस प्रेक्षाघर -मंडप का बहुत बड़ा विस्तार है।
१०. अभिषेक मंडप के मध्य भाग में विशाल अभिषेक चबूतरों की रचना की।
११. चबूतरा निर्मल एवं जल रहित था। पर सूक्ष्म पुद्गलों के रत्नों से ऐसा लगता था जैसे जल तरंग चमक रही है।
१२. अभिषेकपीठ की तीन दिशाओं में सीढ़ियों का निर्माण किया।
१३. उन सीढ़ियों से लेकर तोरण तक का वर्णन उसी प्रकार है, जैसा राजप्रश्नीय सूत्र में किया गया है।