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दोहा
१. सबके अपने अपने स्थान पर चले जाने के बाद भरत जी ने निर्विघ्न राज्य करने के लिए तेरहवां तेला किया।
२. मेरा साम्राज्य सदा एकधार निर्विघ्न रहे ऐसा ध्यान पौषधशाला में करने लगे।
३. इस प्रकार का ध्यान करते हुए तीन दिन पूरे हुए तब आभियौगिक देव को बुलाकर भरतजी कहते हैं
४. देवानुप्रिय! तुम ईशानकोण में जाओ और राज्याभिषेक करने के लिए जल्दी से जल्दी मंडप की विकुर्वणा करो।
५. मंडप ऐसा करना जो विशाल, मनोरम और अनुपम हो। उसका निर्माण कर शीघ्र मेरी आज्ञा मुझे प्रत्यर्पित करो।
६. यह सुनकर आभियौगिक देवता मन में अत्यंत प्रसन्न हुआ। अब वह मंडप की विकुर्वणा कैसे करता है उसे चित्त लगाकर सुनें।
ढाळ : ५८
१. आभियौगिक देवता विनीता नगरी के ईशानकोण में गया।
२. वैक्रिय समुद्घात कर उस शक्ति से आत्म-प्रदेशों का विस्तार किया।