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दुहा १. सितंतर लाख पूर्व नीकल्या, जब बेठा भरतजी राज।
जद पिण था पुन अति घणा, वेरी दुसमण गया सर्व भाज।।
२. सुखे समाधे राज करतां थकां, नीकल्या वरस हजार।
मंडलीक मोटों राजवी, तिणरी रिध रो घणों विसतार।।
३. एकदा प्रस्तावे राजा भरत रें, आवधसाला रे माहि।
चक्ररत्न आय ऊपनों, पूर्व पुन्य पसाय।।
४. ते चक्ररत्न अति दीपतो, दीठां नयण ठराय।
तिणरा करें महोछव किण विधे, ते सुणजो चित्त ल्याय।।
ढाळ : ३ (लय : परम सयाणी हो राणी तास गुणावली) १. पुन प्रमाणे हो चक्र रत्न ऊपनों, तिणरो नाम सुदंसण जाण।
जोत ने कांत्र छे हो अति रलीयांमणी, तिणरा जिणवर कीया बखांण।
२. भरत चक्री छे हो राजेसर भरत खेतनो, ज्यारे भाग में हुतो थो ताहि।
पुन उदेंसु हो इसरी चीजां नीपजें, तिण दीठां ई नयण ठराय।।
३. आवध घर रुखवालो हो आयो , तिण अवसरें, तिण दीठों , चकर रतन।
हरष संतोष हो पाम्यों तिण अति घणों, वळे अणंद पांम्यों तन मन।।
४. परम उतकष्टों हो भलों मन थयों तेहनों, प्रीत उपनी मन कोड।
हिवडो उलसी हो हरष रें वस करी, हेज भरांणो हो जोड।।