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दुहा
१. जिहां पोताना आवास छे, तिण प्रसाद नों बारलो दुवार।
तिहां हस्ती रत्न उभों राखनें, हेठा उतरीया तिणवार।।
२. हिवें सोलें सहंस देवतां भणी, घणों दीयों सनमान सतकार।
वळे बत्तीस सहंस राजा तेहनें, सतकास्या सनमांन्या तिणवार।।
३. सेनापती गाथापती रत्न ने, वढइ प्रोहित रत्न ने जांण।
यां च्यारूं रतनां ने भरत जी, घणों दीयो सतकार सनमान।
४. रसोइदार तीनसों साठां भणी, वळे सेणी प्रश्रेणी अठार।
त्यां सगलां में रूडी रीत सूं, दीयों सनमान में सतकार।।
५. राजा इसर तलवर आदि दे, त्यांने पिण सनमांने सतकार।
निज भवण माहें पेसतां, किण किण में लीधा , लार।।
ढाळ : ५६ (लय : श्रावक धर्म करो सुख)
भरत जी देस साझे घर आया।। १. भरत जी निज भवन माहे चाल्या, अस्त्री रत्न त्यारें लारो जी।
वळे छ रित ना सुख नी करणहारी, अस्त्री साथे बत्तीस हजारो जी।
२. वळे बत्तीस सहंस किल्याणीक अस्त्री, जनपद देस राजां री बेटी जी।
ते पिण साथे भवण में जातां, त्यांरा रूप रे कुण आवें जेटी जी।
३. बत्तीस विध रा नाटक बत्तीस हजार, त्यां सहीत भरत राजांनों जी।
निज अवास माहे प्रवेस करें ,, मन माहे घणों हरषवांनों जी।।