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भरत चरित
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४. जैसे चमरेंद्र असुरकुमार देवों में अभिराम राज्य करता है, वैसे ही आप भरतक्षेत्र में सब जगह राज्य करें।
५. जैसे धरणेंद्र नागकुमार देवों में राज्य करता है वैसे ही आप भरतक्षेत्र में कुशलता से राज्य करें।
६. आप अनेक लाख पूर्व-करोड़ पूर्व तक विनीता में सुखद राज्य करें।
७. आप विनीता में विराज कर अनेक कोडाकोड पूर्व तक पूरे भरत क्षेत्र में अखंड राज्य करें।
८. छह खंडों की प्रजा का पालन कर यश-सौभाग्य प्राप्त करें। आप पूरे ठाठबाट से राज्य करें। आपके पुण्य अथाह हैं।
९. भरत नरेंद्र के विनीता में चलते हुए इस तरह स्थान-स्थान पर लोक प्रशंसा कर रहे हैं।
१०. सहस्रों आंखों की माला उन्हें स्थान-स्थान पर देख रही है। सहस्रों मुखों की माला मुख से गुणगान कर रही है।
११. सहस्रों हृदयों की माला उन्हें देख कर हर्षित हो रही है। वह देखते-देखते तृप्त ही नहीं होती है। देखने की उत्कंठा बनी हुई है।
१२. सहस्रों अंगुलियों की माला एक-दूसरे को दांए हाथ की अंगुलियों से भरतजी के रसाल रूप को दिखा रही हैं।
१३-१५. हजारों-हजार नर-नारियों की अंजली माला को स्वीकार करते हुए सबके सामने देखते हुए, सबको सम्मान देते हुए, किसी की उपेक्षा नहीं रहते हुए जगह-जगह रुकते हुए, निर्घोष वाद्ययंत्रों के बजते हुए, अत्यंत आडंबर के साथ भरतजी अपने घर आ रहे हैं।