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दोहा
१. इस प्रकार विनीता आते समय बीच में जो भी ग्राम-नगरादि आते हैं, वहां अपनी आज्ञा स्वीकार करवाकर, उपहार स्वीकार कर अपने सेवक स्थापित करते हैं ।
२. यों विश्राम लेते हुए विनीता राजधानी के न निकट न दूर अपनी सेना का पड़ाव करते हैं
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३. विनीता नगरी में आकर बारहवां तेला करते हैं । इसका सारा विस्तार पूर्वोक्त रूप से कहना चाहिए ।
४. तीन दिन पूरे होने पर पौषधशाला से बाहर निकल कर पूर्वोक्त रूप से हस्तीरत्न पर सवार हुए।
५.
नौ निधान तथा चतुरंगिणी सेना को विनीता के बाहर स्थापित कर, शेष परिवार के साथ नगरी में प्रवेश कर रहे हैं ।
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६. भरतजी के आगमन की बात जानकर सभी हर्षित होते हैं । वे भरत नरेंद्र का वर्धापन करते हैं उस विधि को चित्त लगाकर सुनें ।
ढाळ : ५३
सुखपूर्वक भरत नरेन्द्र का वर्धापन करो ।
१. मोती, मणि, माणक, हीरा तथा पन्ना के थाल भर-भरकर सुखपूर्वक भरत नरेंद्र का वर्धापन करो ।
२. ऐसे शब्द सुनकर सब हर्षित हुए। रत्नादि के बड़े-बड़े उपहार हाथ में लेकर तुरंत तैयार हो गए।