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दोहा १. भरत राजेंद्र के पुण्य प्रबल हैं, अतुल्य हैं। वे विनीता की ओर चले हुए आ रहे हैं। उनके साथ में अनेक राजा हैं।
२,३. पूर्वोक्त विस्तार के अनुसार वे बड़े आडंबर से सुखे-सुखे मंजिल-दरमंजिल चलते हुए, सारी सेना से परिवृत्त होकर, वाद्ययंत्रों की धुंकार के साथ, बत्तीस प्रकार के बत्तीस हजार नाटक करवाते हुए चक्ररत्न की गति के अनुसार चल रहे हैं ।।
४. उनके आगे-आगे यथायोग्य अनुक्रम से कौन-कौन चले उनका पीछे भी वर्णन किया, आगे फिर कह रहा हूं। बुद्धिमान उनकी सही पहचान करें।
ढाळ : ५२
ये भरतजी के आगे-आगे चल रहे हैं। १. अनेक लोग हाथ में खड्ग लिए हुए हैं, अनेक लोग लाठी तथा धनुषधारी हैं, अनेक लोग हाथ में पासे, पुस्तक लिए हुए हैं, अनेकों के हाथ में बीणा है।
२. अनेक तम्बोलधारी एवं मशालची अपने-अपने स्वरूप तथा अपनी-अपनी वेष-भूषा में आगे-आगे चलते हुए अनुपम दीख रहे हैं।
३. फिर अनेक दंडधारी दंड लिए हुए तथा जटाधारी जटा सहित आगे-आगे अनुक्रम से चलते हुए सुशोभित हो रहे हैं।
४. अनेक मोरपिंछीधारी हैं, अनेक मुंड मस्तक हैं, अनेक सुशिक्षित विदूषक भी