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भरत चरित
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१०. शत्रुओं को जीतकर अपराजेय राज्य प्राप्त किया। सारे रत्न उपलब्ध हुए। सब रत्नों में चक्ररत्न प्रधान है।
११. नौ निधान के अधिपति हुए। कोठार-भंडार भर गए । बत्तीस हजार बड़ेबड़े राजे उनके पीछे चलने लगे।
१२. भरतजी ने भरतक्षेत्र के सभी स्थानों पर साठ हजार वर्षों में अपनी आज्ञा स्वीकार करवाई।
१३. अब भरत नरेंद्र अपने सेवक पुरुष को बुलाकर उसे हस्तीरत्न को सजाकर, अपनी आज्ञा को प्रत्यर्पित करने का आदेश देते हैं।
१४. सेवक ने आज्ञा के अनुसार हस्तीरत्न को सजाकर समुपस्थित कर दिया। राजेंद्र धूमधाम से उस पर सवार हुआ।
१५. अब भरतजी अपनी जन्मभूमि और राजधानी विनीता की दिशा में चल रहे हैं। इसीलिए वे बहुत आनंदित हैं।
१६. वे हस्तीरत्न पर बैठे हैं। उनके मुंह के आगे साथिया आदि अष्ट मंगल अनुक्रम से चलते हैं।
१७-१९. जल से भरा हुआ पूर्ण कलश, २ भरा हुआ भंगार लौटा, ३ सहस्र ध्वजाओं के परिवार से महेंद्र-ध्वज, ४ छत्र, ५ ध्वजा, ६ पताका, ७ चमर, ८ मणिरत्नों से जड़ा सिंहासन आदि अनेक मांगलीक (पूर्वोक्त वृत्तांत के अनुसार) मुंह के सामने चल रहे हैं।