________________
दोहा १. पूर्व वर्णन में भरतजी ने जैसे गुफा में चक्राकार मंडल बनाए उन्मग्न तथा निमग्न नदी को पार किया वैसे ही यहां पार उतरे।
२. जिस तरह तामस गुफा के उत्तर द्वार अपने आप खुले, उसी तरह दक्षिण दिशा के द्वार अपने आप खुले। सारी सेना सिंहनाद का गुंजारव करती हुई बाहर निकली।
३. तब भरतजी ने गंगा नदी से पश्चिम दिशा में जाकर वहां विजय कटक का पूर्वोक्त रूप से पड़ाव किया।
४. वहां भी नौ निधान के लिए इग्यारवां तेला किया। चित्त को एकाग्र स्थापित कर मन में उनका ध्यान ध्याने लगे।
५. तीन दिन पूरे होने पर नौ निधान आकर प्रकट हुए। उनके गुणों का कोई प्रमाण नहीं है। उनकी व्याख्या अत्यंत रसीली है।
६. नौ ही निधान पंचवर्ण रत्नों से पूर्ण रूप से भरे हुए हैं। भरतजी भाग्यशाली राजा हैं जिससे उनके नौ निधान प्रकट हुए।
७. उन नौ ही निधानों के लक्षण-गुण अथाह हैं। फिर भी संक्षेप में प्रकट करता हूं। चित्त लगाकर सुनें।
ढाळ : ४८
भरत नरेंद्र ने नौ निधान प्राप्त किए। १. वे सारे लोक में ध्रुव, निश्चल, शाश्वत, अक्षय, अमूल्य हैं। उनका एक भाग भी कभी हीन नहीं होता।