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दोहा
१. नमी - विनमी विद्याधर को विनत किया । जब उनका महोत्सव पूरा हुआ तो फिर चक्ररत्न आयुधशाला से बाहर निकला ।
२,३. एक हजार देवताओं से परिवृत्त होकर वाद्ययंत्रों के बजते हुए वह आकाश मार्ग से ईशान कोण में गंगादेवी के भवन की ओर चला । भरतजी भी उसके पीछेपीछे चले। वहां नौवां तेला किया। यहां सारा विस्तार सिंधु नदी की तरह ही जानना चाहिए ।
४,५. सिंधु देवी की तरह ही गंगा देवी ने भी एक हजार आठ रत्नकुंभ उपहृत किए। उन कुंभों पर स्थान-स्थान पर नाना मणिरत्नों की चित्रकारी की हुई थी । गंगादेवी ने उनके साथ दो स्वर्ण सिंहासन विशेष रूप से भरतजी को उपहृत किए।
६,७. गंगादेवी महोत्सव संपन्न होने पर सहस्र देवों से परिवृत्त चक्ररत्न फिर आयुधशाला से आकाश में आया और गंगा नदी के पश्चिमी तट के दक्षिणी खंड प्रवाह गुफा की ओर चला । भरतजी उसके पीछे-पीछे चले ।
ढाळ : ४७
भरत नरेन्द्र बहुत बड़ा चक्रवर्ती राजा है।
१.
. भरतजी ने दक्षिण खंड प्रवाह गुफा पर आकर पड़ाव किया। पौषधशाला में आकर नटमाली देव को लक्षित कर तेला किया।