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भरत चरित
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२१. उसके जैसे लक्षण-व्यंजन गुण भरतक्षेत्र में और किसी के नहीं हैं।
२२. इंद्रपुरी की लीला के समान वे रात-दिन उसमें क्रीड़ारत रहते हैं।
२३,२४. स्त्रीरत्न से भरतजी विलास तो कर रहे हैं पर अंतरंग में इसे एक तमाशा ही जानते हैं। निश्चय ही इसे भी त्याग कर इसी भव में मोक्षगामी होंगे।
२५,२६. यद्यपि श्रीरानी से उनका अत्यंत स्नेह है पर इसे छोड़ने में भी देरी नहीं करेंगे। उसे त्याग कर निर्मल संयम की आराधना कर सीधे मुक्ति में जाएंगे।