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दुहा
१. नमी विनमी ने सीख दीयां पछे, पोषधसाला थी नीकलीया ताहि।
सिनांन कीयों मंजण घर मझे, पछे आया भोजन घर माहि।।
२. भोजन कीयो भोजन मंडप मझे, असणादिक च्यारूं आहार।
भोजन कर तिहां थी नीकल्या, आयों उवठाण साल मझार।।
३. श्रेणी प्रश्रेणी बुलायनें, कहे छे भरत माहाराय।
नमी विनमी में नमावीया, त्यांरा करो महोछव जाय।।
४. श्रेणी प्रश्रेणी वचन सतकार में, महोछव करे , ठांम ठांम।
श्री राणी सूं भरतजी, भोगवें सुख अभिरांम।।
ढाळ : ४६ (लय : मोतीडा नी तथा सामणी चिरताली धूतारी राम की मतवाली) १. श्री देवी ने भरत बेहूं हिल मिलीया, जांणे पय में पतासा भिलीया।।
पुनवंती राणी, भरत ने पुन उदें मिली आणी।।
२. भारी छे पुनवंत भरत राजांन, श्री रांणी राई पुन असमान।।
३. चोसठ सहंस भरत राजा रे रांणी, इण सरिषी ओर दुजी न जांणी।।
४. पूर्व भव तप कीधो अमोलक भारी, तिणसूं इसरी आंणे मिली नारी।।
५. श्री रांणी पिण पुन उपाया अपार, तिणसूं पायो भरत भरतार।