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दोहे. १,२. सात दिन पूरे होने पर भरतजी के मन में ऐसा अध्यवसाय पैदा हुआ तथा ऐसे परिणाम बरते कि यह कौन अपथ्य प्रार्थित एवं लज्जा-लक्ष्मी विहीन व्यक्ति है जिसने मेरी सेना पर बेमौसम की वर्षा की।
३. मूसलधारा पानी की अपार वर्षा का भरतजी का भाव देवताओं ने जान लिया।
४-५. यह जानकर तत्काल सोलह हजार देवता अपने शरीर पर यथास्थान आयुध बांधकर तथा हाथ में शस्त्र लेकर तत्पर हो गए। वे मेघमाली देवता के पास आए और उसे इस प्रकार कटु-विकराल वचन बोले।
ढाळ : ४०
१. अरे नागकुमार-प्रमुख मेघमाली देवता! तुम अपथ्य प्रार्थित, मूढ़, अनाड़ी, अकाल मृत्यु के आकांक्षी एवं निर्लज्ज हो।
२. क्या तुम नहीं जानते यहां भरतक्षेत्र का अधिपति, चतुरंग चक्रवर्ती छह खंड का स्वामी, महाऋद्धिमान् भरत राजा है।
३. भरत नरेंद्र पूनम के चांद के समान है। हम सोलह हजार देवता प्रतिदिन उसकी सेवा करते हैं।