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दोहे १. छत्र रत्न सुशोभन और श्रीकार है। उसके निन्यानबे हजार स्वर्ण की मनोहर शलाकाएं हैं।
२. छत्ररत्न का दंड भी अमोलक है। वह सुलक्षण है। गांठ आदि दोषों से रहित
३. वह अति विशिष्ट मनोहारी एवं अभिराम है। स्वर्णमय एवं सुदृढ़ है। उसका दंड अति भार को भी सह सकता है।
४. वह छत्र अति मृदु एवं चिकने-चुपड़े चांदी के प्याले के समान उज्ज्वल श्वेत एवं अत्यंत मनोहर है।
५. वह अरविंद फूल की कर्णिका के समान है। मध्य भाग का आकार शलाकाओं के पिंजर के समान अति मनोज्ञ है।
६. उसमें विविध प्रकार की कलियां एवं चित्राम है। स्थान-स्थान पर चंद्रकांत आदि मणियां, मोती प्रवाल आदि की रचना है।
___७. तपे हुए रक्तस्वर्ण में पचरंग रत्नों तथा पूर्ण कलश आदि मांगलिक रूप भी उसमें रचे हुए हैं।
ढाळ : ३९
१. रत्नों की सुन्दर किरणों की भांति उसकी कांति है। अनुक्रम से स्थान-स्थान पर यथायोग्य सीधे तथा तिरछे रंगों की अभिराम रचना शोभित है।