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भरत चरित
२२५ ११. आपात चिलातियों का संहार कर उनकी सेना को दही की तरह मथ दिया, ध्वजा-पताका को लूट लिया।
१२. उनके श्रेष्ठ प्रधान, सधीर, ताकतवर योद्धा भी कमजोर पड़ गए। सेनापति रत्न को देखकर वे कांपने लगे।
१३. उनका जोर नहीं चला तो वे दशों दिशि में भाग छूटे। बहुत सारे सुभट मारे गए। बहुत सारे अपने शिविर छोड़कर भाग छूटे।
१४. बहुत सारे योद्धाओं के मारे जाने से वे अत्यंत अवसन्न हो गए भयभ्रांत होकर अत्यंत त्रासित हुए। प्रहारों की पीडित अत्यंत उद्विग्न हो गए।
१५. अपार भय से उनका मनोबल टूट गया। वे युद्ध करने बिल्कुल परिश्रांत हो गए। उनका पौरुष-पराक्रम अस्त हो गया।
१६. शरीर शक्तिहीन हो गया। प्रतिरोध भी नहीं कर सके। सेनापति के तेज को उन्होंने अपनी आंखों से देखा। उसे जीतने में वे असमर्थ हो गए।
१७. सेनापति का ऐसा प्रताप-आताप था। पर भरतजी सबको धूल के समान समझते हैं। इन्हें छोड़कर चारित्र लेकर मुक्ति में जाएंगे।