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दोहा
१. उस अवसर पर भरत नरेंद्र ने मणिरत्न को हाथ में लिया । वह मणिरत्न किस प्रकार का है उसे मन को एकाग्र कर सुनें ।
ढाळ : ३५
यह भरतेश्वर के पुण्य का फल है ।
१. वह चार अंगुल लंबा अमूल्य वस्तु है । मूल्य के बदले में नहीं मिल सकती । उसका तोल अमूल्य - विशिष्ट है।
२. वह तीन अंश और छह कोण वाला है । यह सब मणिरत्नों में प्रधान है । इसकी ज्योति - कांति अनुपम है । यह रत्नों में स्वामी के समान है ।
३. यह उत्कृष्ट वैडूर्य रत्न सब प्राणियों के लिए हितकारी है । एक हजार देवता उसके अधिष्ठायक रहते हैं ।
४. जिसके मस्तक पर मणिरत्न होता है उसे तनिक भी दुःख नहीं होता बल्कि पहले जो दुख होते हैं वे भी विलय हो जाते हैं ।
५.
देवता, मनुष्य तथा तिर्यंचों के विविध प्रकार के उपसर्ग होते हैं । मणिरत्न पास में हो तो तनिक भी उपसर्ग उत्पन्न नहीं होता ।
६. मणिरत्न पास में होने से संग्राम में चलने वाले बाण, गोले आदि शस्त्र तनिक भी चोट नहीं कर सकते।
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७. मणिरत्न पास में हो तो आदमी चिर युवा रहता है । उसके केश सफेद नहीं होते। वह सर्वथा निर्भय रहता है ।