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आचार्य भिक्षु एक कुशाग्र चर्चावादी भी
थे। उनका अनेक उद्भट लोगों से चर्चा करने का काम पड़ा। यह सौभाग्य की बात है कि उन चर्चावार्ताओं को संकलित कर एक दूरदर्शिता का परिचय दिया गया। पर उन्होंने तत्त्वज्ञान को पद्यों में बांधने का जो प्रयत्न किया, वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। गद्य साहित्य पढ़ने में तो सरल रहता है पर उसे अविकल रूप से स्मृति में संजो पाना अत्यंत कठिन होता है। आचार्य भिक्षु ने पद्य साहित्य की रचना लोक गीतों की शैली में की, इसलिए आज भी अनेक लोग अपने अधरों पर उन गीतों को गुनगुनाते रहते हैं। गीत याद करने में
भी सुगम होते हैं। इसलिए अपढ़ लोगों के लिए
भी वे परम्परित बन जाते हैं।
आचार्य भिक्षु का कवित्व अत्यन्त प्राञ्जल एवं रससिद्ध था। उन्होंने दार्शनिक साहित्य के साथ-साथ आख्यान साहित्य लिख कर भी अपनी लेखनी की कुशलता का परिचय दिया है। उनके आख्यानों में तत्कालीन लोक संस्कृति के सुघड़ बिम्ब उभरे हैं। मानव मन की अतल
गहराइयों को छूने में वे सिद्धहस्त कवि थे। उनके
कवित्व पर विस्तार से चर्चा करने के लिए एक पूरे
ग्रंथ की आवश्यकता है।