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भरत चरित
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१२. स्वामी! आप यह मेरा उपहार स्वीकार करो, मुझ पर कृपा करो, यों कहकर सीख मांगकर वापिस अपने स्थान पर गया ।
१३. भरतजी यह जानते हैं ये सब पुण्य, निःसार हैं । इनको छोड़कर शुद्ध चारित्र का पालन कर आठों ही कर्मों को क्षीण कर इसी भव में मुक्ति में जायेंगे ।