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भरत चरित
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१०. आपने भरतक्षेत्र को जीत लिया। आप छह खंड के स्वामी हैं । आपने बड़ेबड़े देवताओं को झुका दिया। इस प्रकार बोलकर प्रणाम करने लगी ।
११,१२. मैं आपके देश की नागरिक हूं। आपकी किंकरी, आज्ञाकारिणी, कोटवाल की तरह रखवाली करने वाली सेविका हूं। इसलिए आप मेरा उपहार प्रीतिदान स्वीकार करें। यों कहकर जो उपहार लाई उसे भरतजी के चरणों में रख दिया ।
१३. देवी जो उपहार लाई उसे भरतजी के चरणों में रखकर उनका गुणगान करती हुई विदा मांगकर अपने स्थान की ओर लौट गई।
१४. सिंधु देवी को अपनी आज्ञा मनवाकर भरतजी ने उसको सेविका बनाया । परंतु वे उसे छोड़कर संयम का पालन कर मुक्ति में जाएंगे।